किसी भी समाचार पत्र का प्रकाशन करना काफी कठिन कार्य होता है उसके लिए सतत प्रयास और धन की आवश्यकता होती है। आज ऐसे मीडिया की सख्त आवश्कता है जो दूसरों के साथ अपनी भी दशा दिशा का ज्ञान रखे और संतुलन बनाए रखे। आज पत्रकारिता का केंद्रीकरण हो गया है। इतनी बड़ी आबादी वाले देश में केवल कुछ अखबारों का नाम सुनाई देता है। ऐसा आभास होता है कि जो खबर इन अखबारों और न्यूज़ चैनल्स पर है वही न्यूज़ है और वही सत्य है। लेकिन यह अर्ध सत्य है।

इसलिये मैं पत्रकारिता के विकेद्रीकरण की बात कर रहा हूं। विकेन्द्रीकरण से ना सिर्फ अधिक से अधिक खबरें लोगो तक पहुंचेगी बल्कि खबर की विश्वसनीयता बढ़ेगी। जब एक खबर सौ समाचार पत्रों में छपेगी तो उसमें वास्तविकता अधिक होगी, उसके लिए प्रायोजक नहीं ढूंढा जा सकेगा और पेड न्यूज़ जैसे शब्द को विराम लग सकेगा। लेकिन उसके लिए क्षेत्रीय समाचारपत्रों को सशक्त होने की आवश्कयता होगी। इसलिए लीड इंडिया ग्रुप ने ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन (लीपा) की स्थापना की। लीपा क्षेत्रीय समाचारपत्र/पत्रिका प्रकाशकों के लिए ऐसा मंच बना है जहां उनकी सभी समस्याओं का निदान हो सके।

बदलते समय के साथ मीडिया में भी भटकाव देखने को मिल रहा है। पेड न्यूज जैसे कांसेप्ट की भी आहटे सुनाई दे रही हैं। साथ ही यह बात भी सही है कि आज खबरों को बिना जांचे लोगों तक पहुंचाने की प्रवृत्ति तेज हुई। यह प्रवृत्ति खासतौर से बड़े समाचार पत्रों और माध्यमों में दिखाई दे रही है। उनके समाचार माध्यमों का जहां एक ओर अधिकर प्रसार है वहीं दूसरी ओर उसके लिए बड़े संसाधन है और संसाधनों को बनाए रखने के लिए धन की आवश्कयता है। यहीं से खबरों के साथ समझौतों की कहानी शुरू होती है।

जबकि कम प्रसार वाले समाचार पत्र कोशिश करते हैं कि उनकी खबरों में धार हो, लोग उनका अखबार समाचारों के लिए पढ़े गॉसिप या सनसनीखेज खबरों के लिए नहीं।मुझे खुशी है कि लीड इंडिया समूह इस गम्भीर जिम्मेदारी को निभाने की कोशिश कर रहा है। मीडिया का काम केवल आलोचना नहीं होता बल्कि सकारात्मक पहलुओं को भी सामने लाना होता है। लीड इंडिया समूह अपने वेब पोर्टल और समाचार पत्रों के माध्यम से यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि जो भटकाव आज हम पत्रकारिता में देखते हैं उसे यहां संतुलन में बदला जा सके।

लोग मीडिया पर जिस तरह आस्था व्यक्त कर रहे हैं उसे कायम रखा जा सके। खबरों को व्यवसायिक मजबूरी से समझौता ना करना पड़े। पत्रकारिता के विषय में दो अवधारणांए प्रचलित हैं, कि पत्रकारिता समाज का आइना होती है दूसरा, पत्रकारिता अर्द्धसाहित्य होती है। लेकिन बदलते समय के साथ पत्रकारिता इन दोनो अवधारणाओं से दो कदम आगे आते हुए दिशा निर्देशक और पथ प्रर्दशक का भी काम कर रही है। यही वजह है कि वर्तमान में मीडिया का रोल बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

आज जिस तरह मीडिया देश की विभिन्न संस्थाओं में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर कर रहा है उससे लोगो का  भरोसा मीडिया पर बढ़ता जा रहा है, और जब भरोसा बढ़ता है तो उसे सम्भालना बहुत आवश्यक होता है। आज मीडिया को अतिरिक्त सचेत होने की आवश्यकता है इस लिहाज से पुरानी अवधारण के अनुसार आज मीडिया समाज का मात्र आइना भर नहीं रह गया है ना ही ये अर्द्धसाहित्य है क्योंकि साहित्य में कल्पना भी शामिल होती है।सही मायनों में अब मीडिया लोकतंत्र के चतुर्थ स्तंभ की भूमिका निभा रहा है। ये लोगों को प्रेरित कर रहा है, सचेत कर रहा है साथ ही प्रहरी की भूमिका भी अदा कर रहा है।

 

सुभाष सिंह

चेयरमैन व मुख्य संपादक

लीड इंडिया ग्रुप

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