लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री सुभाष सिंह ने दिल्ली में प्रकाशकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि दुनिया भर में मीडिया अपनी क्रेडिबिलिटी के लिये जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि मीडिया स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर आवाज़ उठाता है। मीडिया के माध्यम से बड़ी बड़ी क्रांतियां हुई है। भारत में भी मीडिया ने इस गर्व को अनुभव भी किया है। भारत की आजादी, जनलोकपाल आन्दोलन, जैसिका लाल, नीतिश कटारा, और दामिनी जैसे केसों में मीडिया के योगदान की खूब सराहना हुई।

लेकिन इन कुछ बड़ी घटनाओ को छोड़ दें तो धीरे-धीरे राष्ट्रीय मीडिया की छवि लगातार गिर रही है। पहले पत्रकार और पत्रकारिता का बड़ा सम्मान था। पत्रकार जब किसी कवरेज के लिये जाते थे तब उन्हें बड़े सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। लेकिन आज उन्हें सन्देह से देखा, जनता आज की राष्ट्रीय पत्रकारिता से संतुष्ट नहीं है। क्योंकि राष्ट्रीय मीडिया आज व्यवसाय की तरह काम कर रहा है। इतने बड़े स्तर पर काम करने के लिये उसकी मजबूरी भी है। यही कारण है कि उसमें व्यवसायिकत के दोष भी आ गये हैं। प्रतिस्पर्धा और पहले ब्रेक करने की होड़ पत्रकारिता को लीलती जा रही है। यदि आप टीवी बुलेटिन देखने बैठे तो पायेंगे कि बस कुछ ही समाचारों से देश के समाचार कवर हो जाते हैं और वही बुलेटिन दिन भर चलकर आपामें कोफ्त पैदा करता है। टीवी डिस्कशन के चलन में डिस्कशन में मुद्दा कम आपसी बहस ज्यादा होती है।

लेकिन थोड़ी राहत की बात यह है कि आज भी भारत में स्थानीय और क्षेत्रिय अखबार मीडिया की क्रेडिबिलिटी को बनाये हुए हैं। सुभाष सिंह ने कहा कि स्थानीय और क्षेत्रिय अखबार आज भी बड़ी गम्भीरता से पत्रकारिता कर रहे हैं। भले ही उनका अखबार राष्ट्रीय स्तर पर ना दिखता हो लेकिन स्थानीय और क्षेत्रिय स्तर पर देश को इनकी बहुत जरूरत है। इस जरूरत को स्थानीय और क्षेत्रिय अखबार पूरी जिम्मेदारी से निभा रहे हैं।

सरकार और कार्पोरेट के सहयोग के बिना ये अखबार घोर परेशानी में भी अपने धर्म से पीछे नहीं हटते। इतने संकट में भी वो अपनी ईमानदारी और धर्म को बनाये हुए हैं। आज भी भारत में मीडिया सेल्फ रेगुलेशन से काम कर रहा है। इस सेल्फ रेगुलेशन को बनाये रखने के लिये स्थानीय और क्षेत्रिय अखबारों को आज सरकार, उद्योग जगत के साथ-साथ जनता के सहयोग की भी आवश्यकता है।

पाठकों को चाहिये कि अगर वो राष्ट्रीय अखबार या पत्रिका को खरीद कर पढ़ते हैं तो वो स्थानीय स्तर पर छपने वाले अखबारों को उनसे पहले अपनी लिस्ट में रखें। उन्हें खरीदें उन्हें सहयोग दें। यदि ऐसा नहीं हुआ तो या तो स्थानीय और क्षेत्रिय अखबार कार्पोरेट और राजनीति के अनूकूल खबरे छापने को मजबूर होंगे और स्थानीय मुद्दे उनके लिये महत्वहीन हो जायेंगे या फिर स्थानीय और क्षेत्रिय अखबार दम तोड़ देंगे।

उन्होंने कहा कि यदि सरकार चाहे तो स्थानीय और क्षेत्रिय अखबारों के हित में नीतियां बना सकती है। हैरानी होती है इस देश में पत्रकारिता को ना तो उद्योग का दर्जा प्राप्त है और नाही उसे समाज सेवा करने के आधार पर सरकारे सहायता प्राप्त है। जरा सोचिये इससे बड़ी शर्म की बात आज भी इस देश में पत्रकार और अखबार मालिक को लोन नहीं मिलता। सरकार चाहे तो अखबार को विकसित करने के लिये लघु एवं कुटीर उद्योग की तर्ज पर लोन दे सकती है।

सुभाष सिंह ने कहा कि परंतु आज के हालातों में सरकार की नीयत पर शक होता है। सरकारी विज्ञापन के माध्यम से सरकार मीडिया पर अपनी लगाम हमेशा कसे रखना चाह्ती है। ऐसे में पाठक और उद्योग जगत को आगे आना होगा ताकि पत्रकारिता के उसूलों को कायम रखा जा सके।

 

 लेखक श्री सुभाष सिंह लीड इंडिया ग्रुप के चेयमैन एंड एडिटर इन चीफ तथा लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

 संपर्क-  ligsubhash@gmail.com 

 

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